रिपोर्ट विरेन्द्र तोमर।
बागपत/ बडौत /बरनावा में धर्म नगरी मध्यकालीन ऐतिहासिक क्षेत्र वरणार्वत बड़े बाबा देवाधिदेव 1008 श्री चंद्र प्रभु भगवान का निर्वाणकल्याक महोत्सव वार्षिक रथयात्रा के साथ 6 मार्च को समाधिस्थ आचार्य श्री 108 ज्ञान सागर जी महाराज एवं सप्तम पट्टाचार्य श्री 108 ज्ञेय सागर जी महामुनिराज का मंगल आशीर्वाद से मनाया गया। समारोह के दौरान आचार्य ज्ञेयसागर की नवोदित शिष्याएं आर्यिका सुज्ञानमति माताजी, आर्यिका दयामति माताजी एवं क्षुल्लिका अक्षतमति माताजी के सानिध्य और पंडित अंकित शास्त्री, दिल्ली के कुशल निर्देशन में हर्षोल्लास पूर्वक सम्पन्न हुआ।
समारोह में मांगलिक क्रियाओं में सर्वप्रथम नित्य अभिषेक एवं पूज्य माताजी के मुखारविंद से विश्व शांति की कामना के लिए दिव्य मंत्रों के द्वारा शांति धारा की गई । प्रथम अभिषेक करने का पुन्यार्जन अजय जैन, मनीष जैन को प्राप्त हुआ शांति धारा करने का सौभाग्य. श्रीपाल जैन नेत्रपाल जैन विजय जैन जौहड़ी वाले दिल्ली एवं जनेश्वर दास जैन, अंकुर जैन, विशाल जैन को प्राप्त हुआ । तदोपरांत सामूहिक पूजन और निर्माण लाडू चंद्रप्रभु के पावन चरणों में अर्पित किया । लकी ड्रा के द्वारा लाडू चढ़ाने का सौभाग्य सुरेश जैन- रजत जैन, गंगेरू वाले ऋषभ विहार, दिल्ली प्रमोद कुमार जैन, चंदायन वाले, नोएडा एवं
प्रवीण कुमार जैन शशांक जैन, लकड़ी वाले, मेरठ को प्राप्त हुआ एवं उपस्थित जन समूह ने बड़े ही भक्ति भाव के साथ भगवान के समक्ष लाडू समर्पित किये ।
समस्त उपस्थित जन समूह माता जी के प्रवचन सुनकर आनंदित हो बैठे ।
स्वयं कर्मकरोत्यात्मा स्वयं तत्फलमश्नुते
स्वयं भ्रमति संसारे स्वयंमेव संसार विमुच्यते
जीव स्वयं कर्म करता है, स्वयं उसका फल भोक्ता है, स्वयं ही संसार में भ्रमण करता है और इस संसार को स्वयं ही छोड़ता है । हमारे कार्यक्रम भी तीर्थंकर हुए हैं, वे इस संसार से पर हो चुके हैं ।उनका ना तो जन्म होगा, ना उनको शरीर की प्राप्ति होगी और ना ही उनको मरण का दुख भोगना होगा । वे ऐसे लोक में पहुंच चुके हैं जिसे विद्वानों ने मोक्ष शास्त्रीय भाषा में सिद्ध शिला कहते है । वे वहां से लौट कर पुन: इस धरा पर नहीं आयेंगें, ऐसे पुण्यशाली महापुरुषों में अष्टम तीर्थंकर देवाधिदेव जिनेंद्र भगवन् चंद्रप्रभु भगवान का आज हम सभी निर्वाण कल्याणक महामहोत्सव हम मना रहे हैं । आचार्यों ने इस प्रकार के समारोह को जिन धर्म प्रभावना के अंतर्गत स्थान दिया है । यह जिनधर्म प्रभावना वही है, जिसको सम्यक दर्शन के अष्टांग में धर्म प्रभावना कहा गया है । रत्नाकरण्ड श्रावकाचार में धर्म प्रभावना के बारे में कहा गया है- अज्ञानतिमिरव्याप्तिमपाकृत्य यथायथम्।
जिनशासनमाहात्म्यप्रकाश: स्यात्प्रभावना अज्ञान रूपी अंधकार के विनाश को जिस प्रकार बने उसे प्रकार दूर करके जिन मार्ग का समस्त मतावलंबियों में प्रभाव प्रकट करना प्रभावना नाम का आठवां अंग है ।
पूज्य माताजी के प्रवचनों के उपरांत वार्षिक रथयात्रा महोत्सव का शुभारंभ ध्वजारोहण के साथ हुआ, जिसको करने का सौभाग्य श्रीमती अनीता जैन एवं उनके पुत्र लक्ष्य जैन, (श्री जैन ज्वैलर्स, सर्राफ), मेरठ को प्राप्त हुआ / दीप प्रज्जवलन – प्रतीक जैन (स्वस्तिक फैशन), गांधीनगर दिल्ली / चित्र अनावरण – प्रदीप जैन- मोहित जैन (शांति ट्रेडर्स )आनंद विहार, दिल्ली, रितेश जैन अंकुर जैन (अरिहंत ज्वैलर्स) मेरठ, 3.परमहंस जैन-अरविंद जैन (डाहर वाले)वाले सूरजमल विहार, दिल्ली एवं स्वागताध्यक्ष का सौभाग्य शशांक जैन-उमंग जैन-निमित्त जैन ( न्यादरमल जैन बरनावा रईस परिवार) दिल्लीको प्राप्त हुआ।