श्री चंद्रप्रभ एवं श्री पराश्वनाथ भगवान का जन्म, तप कल्यानक धूमधाम से मनाया गया है।

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2024-12-26 | 16:00h
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2024-12-26 | 16:00h
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Jamal Ali Khan
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eastindiatimes.in

रिपोर्ट विरेन्द्र तोमर/

बागपत/ बडौत/बरनावा में श्री दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र बरनावा की पावन भूमि पर अष्टम तीर्थंकर भगवान चंद्रप्रभ स्वामी जी एवं श्री पराश्वनाथ जी का जन्म एवं तप कल्यानक बड़ी भक्तिभाव के साथ मनाया गया है।
जिसमें सर्व प्रथम भगवान का अभिषेक,शांतिधारा एवं अष्ट द्रव्य भगवान का पूजन विधान किया गया। जिसमें बिनौली,खिवाई, हर्रा,सरधना,बड़ौत,बुढ़ाना आदि जगह से आकर प्रभु के चरणों में रतनों को समर्पित किया है। इस पवन प्रसंग पर पंडित ललित जैन बरनावा ने सभा को संबोधित कर कहाँ कि मनुष्य का चरम विकास धन से नहीं धर्म से होता है। मनुष्य की शोभा धर्म से होती है। धर्म शुन्य मनुष्य जानवर पशु के समान होता है। धन सुविधा दे सकता है सुख नहीं ।
1008 श्री चंद्रप्रभ परमात्मा की व्यास जागृत होने के उपरांत व्यक्ति धन की नहीं धर्म की तलाश करता है । धन को मुख्यता प्रदान करने वाला विघटित होता है तथा धर्म को मुरन्यता प्रदान करने वाला संगठित होता है। दुख बाहर से नहीं भीतर की आकांक्षा से आता है ।पकड़ने वाला मनुष्य वृक्षों की भांति टूट जाता है, और नमने वाला दूब की भांति सुरक्षित रहता है। जिस प्रकार शादी करने का अभ्यास नहीं किया जाता। उसी प्रकार श्री चंद्रप्रभ भगवान का भक्त बनने का भी अभ्यास नहीं किया जाता, जो मानव परमात्मा के श्री चरणों में नमस्कार करता है। वह परमात्मा का पुरस्कार पाता है ।मनुष्य अपनी शक्ति का उपयोग पशुता नष्ट करने में करें तो स्वतः ही प्रभुता का जागरण होगा और हम संसार के कारागार से मुक्ति हो जाएगी ।
बादामी बाई जैन, सुनीता जैन, पूजा जैन, ललित जैन, मोहित जैन, हिमांशु जैन आदि लोग रहे है।

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