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पत्रकारिता और चाटुकारिता/यदि साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है तो पत्रकारिता को स्वच्छ जल कहा जाना चाहिए।

ईस्ट इंडिया टाइम्स न्यूज़ एडिटर।

पत्रकारिता का दायित्व समाज के संघर्ष को प्रदर्शित करना है। पत्रकार राष्ट्र के सरोकार के हर मुद्दे प्रमुखता और जिम्मेदारी से उठाने का कार्य करता है,एक अच्छी छवि का पत्रकार अपनी ज़िम्मेदारियों को समझता,लिखने वाले ने लिखा है।

जो बार बार अखरे उसे समाचार कहते हैं।

जो बेच दे समाचार खरीद कार ले कार उसे पत्रकार कहते हैं।

किन्तु वर्तमान पत्रकारिता अब तक के सबसे बुरे दौर से गुज़र रही है, क्योंकि आज के पत्रकार वास्तविक पत्रकार न होकर सिर्फ पत्तलकार हो गए है।जिधर देखो उधर बैठे हैं।
किसी चौराहे पर किसी तिराहे पर डटे बैठे हैं।

जहां भी देखो वहां पर लोग जमें बैठे हैं।

यह लांछन समूचे पत्रकार परिवार पर इसलिए लग रहा है क्योंकि एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है।
आजाद भारत के इतिहास में सबसे बुरा दौर आपातकाल को ही माना जाता है। उस दौर में पत्रकारों और पत्रकारिता को लिखने से रोका गया, पर आज पत्रकार पर चाटुकार होने का आरोप लगाया जा रहा है। इस आरोप का कारण चंद पत्रकारों का झूठा प्रोपेगैंडा तैयार करना है, फिर चाहे उनके इस कुकृत्य से राष्ट्र की आत्मा रुंआसी ही क्यों न हो जाए। ये पत्रकार प्रोपेगेंडा खड़ा करने में इस बात का कतई ध्यान नहीं रखते हैं कि सच क्या है और झूठ क्या।
किसी भी मुद्दे पर मिर्च-मसाला लगाकर जनता के समक्ष परोसने का निकृष्ट काम कुछ पत्रकार कर रहे हैं।उन्हें सत्ता की भूंख है किन्तु इन पत्रकारों को न जाने किस चीज़ की लालसा है।कथाकथित पत्रकार अखबारों के पेज भरने व चैनलों( मीडिया) में चींखने में लगे हैं। तथाकथित बुद्दिजीवी पत्रकारिता को कलंकित करने का घृणित कार्य कर रहे थे।अगर सरकार ने फर्जी पत्रकारों पर लगाम नहीं लगाई तो परिणाम और भी घातक हो जाएंगे।पत्रकार का काम समाज को जोड़ना है तोड़ना नहीं ,पत्रकार समाज का आइना होता पत्रकार अपना निर्भीक निडर हो कार्य करने में लगा जाता है किन्तु आज के दौर में उस पत्रकार की कलम को दबाने का कार्य कर रहे हैं। रसूकदार ,भूमाफिया, नेता,आदि लोग पत्रकारों पर अत्याचार करने से बाज़ नहीं आ रहे हैं ।पत्रकारों की सुरक्षा के लिए अभीतक कोई कानून नहीं बना जिससे आज युग में निडर होकर पत्रकार अपनी से लिख सके।सरकार पत्रकारों के लिए कानून बनाने के वादे तो करती है किन्तु
कुछ दिन के बाद सब कुछ भूल जाते हैं।
बरसात जाने के बाद जैसे मेंडक टर्राना भूल जाते हैं।

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