ईस्ट इंडिया टाइम्स
रिपोर्ट विरेन्द्र तोमर।


बागपत/ बडौत /छपरौली में कावड़ यात्रा संकल्प और श्रद्धा के साथ प्रतिस्पर्धा का केंद्र बन रहा है। आत्मशान्ति, ईश्वर भक्ति और मनोकामनाएँ पूरी होने या मनोकामना करके श्रद्धालु कावड़ का संकल्प लेकर कावड़ उठाते है। जो ईश्वर भक्ति और आस्था का प्रतीक है। लेकिन आज कावड़ यात्रा प्रतियोगिता, प्रतिस्पर्धा और मनोरंजन का भी केंद्र बन रहा है। जो सनातन की पौराणिकता पर कुठाराघात है, अनैतिक है और शास्त्रों के विरूद्ध है। जिसने कावड़ के पवित्र उद्देश्य व कावड़ की पवित्रता को नष्ट किया है।
डाक कावड़ जबरन प्रतियोगिता और कावड़ का बिगडता स्वरूप है। जिसने उपद्रव, डर, हुड़दंग, दुर्घटनाओं, और अशान्ति को उत्पन्न किया है। यह प्रतिस्पर्धा शिव के साथ है या शिव भक्त के, स्पर्धा में प्रतिभाग करने वाला भी नहीं जानता। आखिर शिव उपासक डाक कावड़ से साबित क्या करना चाहता है। इससे महादेव तो प्रसन्न होते है या नहीं; हाँ उनका क्रोध निश्चित रूप से सैकड़ों अप्रिय घटनाओं को जन्म आवश्य देता है।
कुछ असमाजिक तत्व जिनका शिव भक्ति और कावड़ से कोई सम्बन्ध नहीं वह कावड़ियां का वेश धारण कर कावड़ यात्रा को बदनाम करने के उद्देश्य से उपद्रव व हुड़दंग भी करते है। जिससे कावड़ यात्रा ही नहीं सनातन संस्कृति बदनाम होती है। जिसके लिए कावड़ का यह बिगडता स्वरूप दोषी है। ईश्वर भक्ति के लिए समर्पण की आवश्यकता होती है। प्रतियोगिता या प्रतिस्पर्धा की नहीं। शिव को प्राप्त करने के लिए समाधि की आवश्यकता है हुड़दंग की नहीं।
डाक कावड़ एक प्रतियोगिता है और कलाकारों को नृत्य करते हुए कावड़ लाना केवल मनोरंजन है। कावड़ के नाम पर उपद्रव करना असामाजिकता है। जिससे कावड़ व सनातन दोनों बदनाम होते है। इनका भक्ति और श्रद्धा से कोई सम्बन्ध नहीं है।
कुछ लोग इसे ताजिया व सड़क पर नमाज़ पढ़ने की तरह सनातन का शक्ति प्रदर्शन कह सकते है या कुछ लोग शिव के प्रति भक्ति का पागलपन लेकिन यह सनातन की पौराणिकता के अनुरूप नहीं है। सनातन में संसाधनों, वाहनों, झाँकियों के साथ यात्रा का प्रावधान है और ईश्वर भक्ति के गीतों पर नृत्य करना भी सनातन के विरूद्ध नहीं है परन्तु इसे प्रतिस्पर्धा या प्रतियोगिता का रूप देना सनातन के विरूद्ध है। कलाकारों के साथ नृत्य करते हुए मनोरंजन का स्वरूप देना अनैतिकता है, ईश्वर भक्ति नहीं।