अंधों में काना राजा ।
समाचार संपादक
सय्यद जमाल अली।
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किसी ज़माने में एक राजा ऎसा भी हुआ करता था?अंधो में काना राजा।
ये कहानी एक गांव की है।गंगा तट पर बसे झूंजनू नाम का एक छोटा सा गांव है वहां के लोग कच्ची मिट्टी मकानों में अपनी गुज़र बशर करते थे तेज़ धूप और मूसलधार बारिश से कहां तक बचाव हो पाता होगा वे लोग ही जानते होंगे,उनके पास पहनने को मैले कुचैले कपड़े और मोटा झोटा अनाज पेट भरने के लिए भी पर्याप्त नहीं हो पाता होगा मिट्टी के बर्तन बनाकर ,तेल पेरकर ,खेतों में मजदूरी करके जैसे तैसे जो कुछ जुटा पाते होंगे वह उसी से अपना और अपने परिवार का पेट पालते थे, ऎसे गांव में पढ़ाई लिखाई कर पाना बड़ा मुश्किल ही नहीं बल्कि असम्भव था।
उसी गांव में रमलखन चौधरी नाम परिवार रहा कर्ता था,उनकी काफी साख थी चौधरी का पूरे गांव में दबदबा था,उन्होंने अपने पुत्र रामप्रसाद को पास के एक गांव में पाठशाला में पड़ने के लिए भेज दिया चौधरी ने अपने पुत्र को प्रायमरी शिक्षा दिलवाई किस्मत से उनकी पुत्र का विवाह एक शहर में गया।एं क्या था,चौधरी जी के मंसूबे पैंग चढ़ाने लगे
उन्होंने अपने पुत्र रामप्रसाद को अपनी पुत्री के घर शहर आगे की पढ़ाई करने के लिए भेज दिया।जब उनका पुत्र छुट्टियों में अपने घर आता था उनसे बड़ा लाड़ प्यार किया जाता था ।जब रामप्रसाद वापा जाते थे उनके साथ एक पिपिया घी, गुड़ की भेली उनके साथ शहर में भेज दी जाती थी चौधरी साहब पूरे गांव में अपने पुत्र का गुणगान करते ना अघाते थे, गांव वाले चौधरी साहब की बातों से प्रभावित रहते थे,उन्हें लगता था उनका पुत्र वास्तव में गांव वालों के लिए देवतातुल्य है उसकी चर्चा पूरे गांव में होती थी,चौधरी साहब की तो बांछे खिली रहती थी।जैसे तैसे रामप्रसाद ने अपनी हाईस्कूल की परीक्षा दूसरी श्रेणी में उत्तीर्ण कर ली।अब क्या था सारे गांव में उनके चर्चे होने लगे। गाव से और शहर से बड़े बड़े रिश्ते आने लगे। गांव में कोई भ समस्या होती थी तो रामप्रसाद की पूंछ होती थी।यदि कहीं से कोई भी पत्र आता था रामप्रसाद से पढ़वाया जाता था।इसी प्रकार गांव से दूर कहीं किसी को पत्र भेजना होता था,रामप्रसाद से लिखवाया जाता था उनके नखरे बर्दाश्त किए जाते थे घर से गांव तक कोई भी काम रामप्रसाद की सलह के बिना नहीं किया जाता था गांव के झगडे में भी गांव वाले राम प्रसाद से सालह लिए बिना ना रहते थे,राम प्रसाद ही पूरे गांव के निरक्षर लोगों में एक पढ़े लिखे थे।राम प्रसाद पढ़ाई करने के बाद शाहर से वापस अपने गांव आ गए,कुछ समय बीतने के बाद चुनाव का ढोल बज गया, गांव के लोगों ने राम प्रसाद को अपने गांव का मुखिया चुनलिया और वो अंधों में काने राजा कहलाने लगे?
लेखक
ईस्ट इंडिया टाइम्स
सैय्यद जमाल अली
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