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श्री चंद्रप्रभ दिगम्बर जैन मंदिर में चंदप्रभ भगवान का मासिक मस्तकाभिषेक बड़ी धूमधाम से मनाया गया

रिपोर्ट वीरेंद्र तोमर

बिनौली/बागपत।थाना क्षेत्र बिनौली के बरनावा की तपोभूमि पर श्री चंद्रप्रभ दिगम्बर जैन मंदिर में रविवार को अतिश्यकारी चंदप्रभ भगवान का मासिक मस्तकाभिषेक बड़ी ही धूमधाम के साथ भक्तिभाव पूर्वक मनाया गया। जिसमें स्थानीय समाज एवं बाहर से आये हुए श्रद्धालुओं ने बढ़-चढ़कर कर भाग लिया। इस पावन पुनीत अवसर पर सर्वप्रथम अभिषेक मोदीनगर से आये रजनीश जैन राजीव जैन (चंदायन वाले) जी के परिवार ने भगवान् के महाभिषेक का पुण्यार्जन प्राप्त किया । इसके उपरांत मंदिर जी में उपस्थित सभी भक्तगणों ने भगवान् का महाभिषेक किया । महाभिषेक के उपरांत चमत्कारी दिव्य शांतिमंत्रों के साथ भगवान् के मस्तक पर, विश्वशांति की कामना के साथ शांतिधारा की गयी। शांतिधारा में भगवान के दाहिने ओर से शांतिधारा करने का सौभाग्य श्री विवेक जैन,गाजियाबाद जैन परिवार ने एवं भगवान के बायीं ओर शांतिधारा करने का सौभाग्य श्री सिद्धांत जैन, जानसट जैन परिवार ने प्राप्त किया। श्री मुकुल जैन (लाइट वाले) साहिबाबाद ने भगवान् का मार्जन किया । मार्जन के बाद आये हुए श्रद्धालुओं ने भक्ति के साथ जगमग दीपों से श्री प्रतीक जैन दिल्ली जैन परिवार के साथ आरती की एवं अष्टद्रव्यों से चंदाप्रभु भगवान् की महार्चना की। इस पावन सुअवसर पर पंडित अंकित शास्त्री “आदित्य” जी ने कहा – ” जिनेंद्र भक्ति से मुक्ति की प्राप्ति होती है। वस्तुत: जब हम प्रभु के चरणों में अपने को समर्पित कर देते हैं तो आत्मा में पवित्रता का संचार होता हैं। यह भक्ति, पूजा अनुष्ठान जो मार्ग हैं वह आत्मा के कल्याणक का एक सातिशय निमित्त हैं। भगवान् की भक्ति, एवं महाभिषेक करने से जीवन में दु:ख का आभाव होता हैं एवं वर्तमान जीवन में सुख प्राप्ति होती हैं। जिनेंद्र भगवान् का महाभिषेक करने से जीवों को आगामी भवों में परम्परा से सप्त परमस्थान प्राप्त होते हैं । इन परमस्थानों का वर्णन आचार्य जिनसेन स्वामी ने आदिपुराण में किया हैं। जिनमें सातवां निर्वाण परमस्थान हैं। भगवान् के महाभिषेक करने से पूर्व संचित अशुभ कर्म विनष्ट हो जाते हैं एवं उनकी भक्ति करने से हमारे अंदर परिणामों में निर्मलता और उज्जवला बढ़ती हैं। भक्ति की यह प्रक्रिया त्रिमुखी होती हैं। जिसके एक तरफ भक्त होता है दूसरी तरफ होता है उसका आराध्य परमात्मा और बीच में होती है भक्ति। जो भक्त को भगवान से जोड़ दे उसका नाम है भक्ति। भक्ति वह माध्यम है जिससे हम परमात्मा से जुड़ सकते हैं, उनके गुणों से जुड़ सकते हैं । यह एक प्रक्रिया है, इस प्रक्रिया को आत्मसात करके इन बातों को सहजता से प्रकट किया जा सकता है घटित किया जा सकता है । हम भगवान की भक्ति करते हैं, कई रूपों से भगवान की भक्ति की जा सकती है । भगवान की भक्ति का मतलब है उनके गुणों का अनुराग होना । जैन दर्शन में भगवान की भक्ति के लिए कहा गया है “वंदेतद्गुणलब्धये” भगवान के गुणों के समान गुणों की प्राप्ति के लिए उनकी वंदना करता हूं । यहां भक्त भगवान से कहना चाहता है कि “हे भगवन् ! मैं आपकी वंदना कर रहा हूं केवल इसीलिए कि आपके गुणों का हमें लाभ हो, प्राप्ति हो । यह अर्हद् भगवान् की भक्ति है जो हमें उनसे जोड़ती है ‌ । हृदय से भरकर, भावों से विशुद्ध होकर परमात्मा की ऐसी शाश्वत भक्ति करनी चाहिए। आयोजन में क्षेत्र के अध्यक्ष जीवंधर जैन, महामंत्री पंकज जैन,कोषादक्ष पवन जैन,भागचंद जैन,संदीप जैन,हंस जैन,अशोक जैन,आदि सभी मौजूद रहे।

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