रिपोर्ट संजीव कुमार सक्सेना।

फर्रुखाबाद। जयंती पर गोष्ठी करके आर्य समाज ने महर्षि वाल्मीकि को याद किया है आदि कवि महर्षि वाल्मीकि जयंती के अवसर पर आर्य समाज कमालगंज के तत्वावधान में खुदागंज क्षेत्र के रमपुरा में गोष्ठी एवं यज्ञ का आयोजन किया गया।जिसमें आर्य समाज के वक्ताओं ने महर्षि वाल्मीकि के जीवन पर प्रकाश डालते हुए उनके जीवन दर्शन को अपनाने पर जोर दिया सभी श्रद्धालुओं ने वैदिक मंत्रों से यज्ञ में आहुतियां देकर लोक कल्याण की कामना की वैदिक आचार्य संदीप आर्य ने यज्ञ सम्पन्न कराया उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि महर्षि वाल्मीकि जी भारतीय संस्कृति के आदि कवि और महान वैदिक ऋषि थे उनका जीवन सत्य तपस्या और ज्ञान का प्रतीक है। वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना की जिसे आदि काव्य कहा जाता है।यह ग्रंथ केवल कथा नहीं,बल्कि वैदिक आदर्शो का जीवन स्वरुप है।इसमें सत्य, धर्म, मर्यादा, त्याग,और भक्ति जैसे गुणों का सुन्दर निरुपण मिलता है श्रीराम के जीवन के माध्यम से उन्होंने मानवता को यह सिखाया कि धर्म पालन और सत्य मार्ग पर चलना ही जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है।वैदिक दृषिट से वाल्मीकि जी का जीवन सत्यवद, धर्म चर के सिध्दांत का अनुपालन है वे एक आचार्य के रूप में लव और कुश को वेद, नीति और धर्म की शिक्षा देते थे उनका जीवन यह प्रमाणित करता है कि कोई भी व्यक्ति साधना और ज्ञान के बल से अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ सकता है। अतः महर्षि वाल्मीकि जी का जीवन हमें वैदिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।यह सिखाता है कि सत्य,तप और भक्ति से ही जीवन का उत्थान संभव है उन्होंने कहा कि आज का समाज समस्या से ग्रस्त हैं जाति के आधार पर भेदभावस, ऊंच-नीच का भाव और सामाजिक असमानता हमारे देश के विकास में बांधा वन रहे हैं।परंतु यदि हम महर्षि वाल्मीकि के जीवन और
विचारो को अपनाएं तो इस समस्या का समाधान संभव है। महर्षि वाल्मीकि जी ने अपने जीवन और विचारों को अपनाएं तो उस समस्या का समाधान संभव है।महर्षि वाल्मीकि जी ने अपने जीवन में सिद्ध किया कि मनुष्य की महानता उसकी कर्मशीलता, ज्ञान और साधना में है न कि उसकी कर्मशीलता, ज्ञान
और साधना में है न‌ कि उसकी जन्मजात जाति में वे स्वयं वनवासी पृष्ठभूमि से थे।परन्तु अपने रुपतप, भक्ति और ज्ञान के बल से महर्षि कहलाए उन्होंने रामायण जैसा अमर ग्रन्थ रचकर यह प्रमाणित किया कि हर व्यक्ति में ऋषितव जाग्रत हो सकता है। उनकी शिक्षा वैदिक सिध्दांत मनुष्य कर्म से महान होता है न कि जन्म से।रामायण में भी उन्होंने सभी वर्गो, जातियों और जीवो के प्रति समान दृष्टि रखी आर्य समाज भी इसी समानता और मानवता का सर्वोच्च
संदेश है यदि आज का समाज वाल्मीकि जी की इस भावना को अपनाएं कि सभी मनुष्य एक ही परमात्मा की संतान हैं तो जाति, ऊंच नीच, भेदभाव जैसे विकार स्वत: समाप्त हो जायेंगे रमेश आर्य ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि जी का जीवन हमें सिखाता है कि सच्चा धर्म मानवता है।उनके आदर्शो को अपनाकर ही हम जातिवाद से मुक्त एक समान, न्यायपूर्ण और वेदिक समाज की स्थापना कर सकते हैं।कार्यक्रम में अमर सिंह आर्य,मोहरपाल सिंह, पीयूष, रामौतार वर्मा, रामपाल सिंह, अनुराग, प्रियंका, आदि उपस्थित रहे।

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