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पत्रकारिता की मौत हो सरकार खामोश क्यों अगर पत्रकार सच नही लिखेंगा तो बचा क्या चाटुकारिता और जी हुजूरी क्या लोकतंत्र का चौथा स्तंभ सिर्फ दिखावा है

ईस्ट इंडिया टाइम्स राजेन्द्र सिंह धुऑंधार

कन्नौज। जनता के साथ गलत हो या अधिकारी और नेताओं को भी अपनी बात रखने के लिए पत्रकार का सहारा लेते है। बाद मे पत्रकारों पर हमले होने से सभी खामोश क्यों हो जाते हैं। क्या पत्रकारों का घर परिवार या इस देश का वोटर नहीं है फिर क्यों है भेदभाव पत्रकारों के साथ। प्रशासन पत्रकार की आवाज को दबाना चाहता है। कन्नौज जनपद के राष्ट्रीय पत्रकार सुरक्षा परिषद के जिलाध्यक्ष राजेंद्र सिंह धुऑंधार ने कहा कि कोई भी प्रदेश हो पत्रकारों पर हमले होने पर वहां कि सरकार मृतक पत्रकार के लिए दो शब्द भी नहीं बोलता है। इससे लगता है कि सरकार ने साबित कर दिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ अब पूरी तरह दरक चुका है। पत्रकार अपनी जान हथेली पर रखकर सच लिखता है और अगर किसी ने भ्रष्टाचार या सत्ता पर या अधिकारियों के खिलाफ आवाज उठाई तो उसके ऊपर हमला तय है या उसकी लाश मिलना तय है लेकिन इससे सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता। आज जो भी पत्रकार सत्ता के या अधिकारियों और माफियाओं के खिलाफ बोलने की हिम्मत करता है। तो उसकी आवाज़ दबाने की कोशिश की जाती है या हमेशा के लिए आवाज़ खामोश कर दी जाती है। आम जनता तक की आवाज़ का काम पत्रकार ही करते है। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से पत्रकारों की सुरक्षा पर सरकार को कोई चिंता नही है। देखा जाए तो आम जनता ही नहीं राजनीतिक दल और अधिकारियों को भी अपनी बात आगे रखने के लिए पत्रकारों की जरूरत पड़ती है। लेकिन किसी को भी पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की फुर्सत नहीं है।सरकार को चाहिए कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिए सख्त कानून बनाएं अगर वाकई लोकतंत्र मे पत्रकारिता को महत्व दिया जाता है। तो पत्रकारों की सुरक्षा की प्राथमिकता होनी चाहिए। लेकिन शायद सरकार को जरुरत नहीं लगती और सरकार आंखें मूंद बैठी रहेगी तब तक लोकतंत्र का चौथा स्तंभ सिर्फ नाम का बना रहेगा। सभी पत्रकारों भाईयों को और सभी संगठनों को चाहिए एक बार पत्रकारों के हक के लिए बड़ा आन्दोलन करने की नौबत आ गई है। मेरी तो सभी पत्रकार संगठनों से ये ही अनुरोध है अब आन्दोलन के लिए तैयार हो जाए।

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