ईस्ट इंडिया टाइम्स रिपोर्ट आदिल अमान

कायमगंज/फर्रुखाबाद
विश्व पृथ्वी दिवस के अवसर पर आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने पर्यावरण असंतुलन और ग्लोबल वार्मिंग के लिए विकासशील देशों की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया। संगोष्ठी में विशेषज्ञों और शिक्षाविदों ने पर्यावरण संरक्षण को लेकर गंभीर चिंताएं जाहिर कीं।
प्रो. रामबाबू मिश्र रत्नेश ने कहा कि हिमनदों का पिघलना, वनों की कटाई, पर्वतों पर अतिक्रमण, भूगर्भ जल का अत्यधिक दोहन और बढ़ता कार्बन उत्सर्जन जैसे कारण पृथ्वी के तापमान में तीव्र वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी पर जीवन बचाने के लिए अब मात्र कुछ ही दशक शेष हैं।
पूर्व प्रधानाचार्य अहिवरन सिंह गौर ने कहा कि यदि हमने प्रकृति और प्रगति के बीच संतुलन नहीं साधा, तो समग्र जीवन का विनाश तय है। वहीं आचार्य शिवकांत शुक्ला ने वैदिक जीवन दर्शन को समाधान बताते हुए कहा कि हमारे ऋषि-मुनियों ने पृथ्वी को माता और प्रकृति को पूज्य माना है। आज हमें उन्हीं आदर्शों की ओर लौटना होगा।

By eid eid

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