ईस्ट इंडिया टाइम्स रिपोर्ट आदिल अमा

कायमगंज/फर्रुखाबाद
राष्ट्रीय प्रगतिशील फोरम की ओर से आयोजित विश्व श्रमिक दिवस की परिचर्चा में वक्ताओं ने असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों की दशा पर गहरी चिंता जताई।
परिचर्चा को संबोधित करते हुए साहित्यकार प्रोफेसर रामबाबू मिश्र रत्नेश ने कहा कि आज की दुनिया में चाहे जनतंत्र हो या साम्यवाद, पूंजीवाद का बोलबाला है। व्यापार का सारा ढांचा मजदूर और उपभोक्ताओं के शोषण पर टिका है। उन्होंने विभागीय भ्रष्टाचार, ठेकेदारी प्रथा और महिला श्रमिकों की दयनीय स्थिति पर चिंता जताई। गीतकार पवन बाथम ने कविता के माध्यम से श्रमिकों की आवाज बुलंद की, मजदूर सही लेकिन नहीं बेजुबान हैं,
अधिकार चाहते हैं, नहीं बेईमान हैं। टुकड़े नहीं जमीन के, हम आसमान हैं।
शिक्षक नेता जगदीश दुबे ने बाल श्रम पर कटाक्ष करते हुए कहा कि होटल, दुकान, खेत और तंबाकू फैक्ट्री में काम करते बच्चों को श्रम विभाग नहीं देखता। जिन बच्चों के हाथों में किताबें होनी चाहिए, वे झाड़ू, पंचर और ठेले में सब्जी बेचते दिखते हैं। प्रधानाचार्य शिवकांत शुक्ला और पूर्व प्रधानाचार्य अहिवरन सिंह गौर ने कहा कि महिला श्रमिकों को ईंट भट्टों और फैक्ट्रियों में सुरक्षित माहौल नहीं मिलता। दस्तावेज़ों से बचने के लिए उन्हें नकद भुगतान कर शोषण किया जाता है। शिक्षक वीएस तिवारी ने कहा कि मजदूर आज भी अदृश्य जंजीरों से जकड़ा हुआ है। डॉ. सुनीत सिद्धार्थ ने श्रमिक वर्ग की पीड़ा को पंक्तियों में समेटा और कहा
पूंजीवादी व्यवस्था अथवा हो जनतंत्र,
है मजदूर सभी कहीं पीड़ित और परतंत्र। कार्यक्रम के अंत में छात्र यशवर्धन की कविता ने व्यवस्था पर करारा व्यंग्य किया और कहा, बेटे लिए प्रधान के मनरेगा के कार्ड,
राशन मुफ्त उड़ा रहे धनपतियों के वार्ड।
