देहरादून में घर बनाना नहीं था आसानढाई बीघा जमीन और 150 फलदार पेड़ लगाने के थे सख्त नियम
ईस्ट इंडिया टाइम्स रिपोर्ट फैयाज अहमद/
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देहरादूनः उत्तराखंड/ निकाय चुनाव का शोर इन दिनों गली-गली और शहर-शहर में सुनाई दे रहा है। 23 जनवरी को होने वाले मतदान में राज्य के 100 नगर निकाय सीटों पर लगभग 31 लाख मतदाता अपने शहरों के नेताओं का चुनाव करेंगे। इन सीटों में से एक प्रमुख और सबसे बड़ा नगर निगम देहरादून है, जहां 7 लाख से अधिक मतदाता नए मेयर और 100 वार्डों के पार्षदों के भविष्य का फैसला करेंगे।
यहां रोशनी डालते है देहरादून के इतिहास पर जो बेहद ही दिलचस्प है। 1883 में जब ब्रिटिश शासन ने इस शहर को एक रिटायरमेंट सिटी के रूप में विकसित करने की योजना बनाई, तो यह एक छोटे सा शहर हुआ करता था। अंग्रेजों ने यहां डालनवाला, राजपुर रोड, परेड ग्राउंड और पलटन बाजार जैसे कुछ खास क्षेत्रों को विकसित किया था। खासतौर पर 1890 में जब अफगान राजा यहां आए, तो उनका घोड़ा परेड ग्राउंड में घूमा करता था, जिससे शहर के लोग अपनी सफाई के प्रति सजग रहे।
20वीं सदी की शुरुआत में, 1901 में म्यूनिसिपल काउंसिल का गठन हुआ और 1938 में देहरादून नगर पालिका की स्थापना की गई। उस समय के नियमों के अनुसार, राजपुर रोड पर घर बनाने के लिए कम से कम ढाई बीघा जमीन जरूरी थी और 150 फलदार पेड़ लगाने की भी शर्त थी।
हालांकि, वर्तमान में देहरादून नगर निगम की स्थिति काफी बदल चुकी है। अब यह शहर अधिक आबादी और अनियंत्रित विकास से जूझ रहा है। राज्य गठन के बाद, देहरादून की आबादी में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई, जो अब 12 लाख के आसपास पहुंच चुकी है। इस बढ़ती आबादी के साथ नगर निगम की प्राथमिकता केवल सफाई और मूलभूत सुविधाओं तक सीमित रह गई है, जबकि शहर की सुंदरता और पर्यावरण पर कोई खास ध्यान नहीं दिया गया है।
देहरादून-दिल्ली एक्सप्रेसवे के निर्माण के बाद शहर में और अधिक लोगों का आगमन होने की संभावना है। इसके साथ ही शहर की आबादी और भी तेजी से बढ़ेगी, लेकिन इस बढ़ती हुई जनसंख्या को संभालने के लिए नगर निगम की कोई ठोस रणनीति नजर नहीं आती। आने वाले नए नगर निगम बोर्ड को इस चुनौती का सामना करना होगा, और यह आने वाले मेयर और पार्षदों के लिए एक बड़ी चुनौती बनेगा।
देहरादून का ऐतिहासिक विकास और वर्तमान स्थिति दर्शाते हैं कि शहर में अब और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। नगर निगम को सिर्फ सफाई और सुविधाओं से अधिक, शहर के पर्यावरण, हरियाली और संरचना पर भी ध्यान देना होगा, ताकि देहरादून की सुंदरता और ऐतिहासिक धरोहर को बचाया जा सके।
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