सरकारी अधिकारी या पार्टी कार्यकर्ता, सहारनपुर का खंड विकास अधिकारी देहरादून में बीजेपी के प्रचार में जुटा
ईस्ट इंडिया टाइम्स फैयाज़ अहमद
देहरादून: उत्तराखंड के नगर निकाय चुनावों में जहां हर पार्टी और उनके उम्मीदवार जीत के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं, वहीं एक दिलचस्प और विवादित घटना ने सबका ध्यान खींचा है। सहारनपुर के साड़ौली कदीम ब्लॉक में तैनात खंड विकास अधिकारी जो खुद देहरादून के निवासी हैं, अपनी सरकारी जिम्मेदारियों को ताक पर रखकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रचार में पूरी शिद्दत से जुटे हुए हैं।
इस अधिकारी का कामकाज उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में होना चाहिए, लेकिन हालिया घटनाएं कुछ और ही कहानी बयां कर रही हैं। आरोप है कि यह अधिकारी अपनी ड्यूटी पर न जाकर, दिन-रात देहरादून के अपने वार्ड में बीजेपी के प्रत्याशी के प्रचार में सक्रिय हैं। न केवल पार्टी का समर्थन कर रहे हैं, बल्कि पूरी तरह से चुनाव प्रचार में भागीदारी निभा रहे हैं।
यह घटना सवाल खड़े करती है कि जब सरकारी अधिकारी अपने पद और कर्तव्यों की गरिमा छोड़कर राजनीतिक गतिविधियों में लिप्त हो जाएंगे, तो संविधान और प्रशासन की निष्पक्षता का क्या होगा?
सवाल यह भी उठता है कि सहारनपुर प्रशासन ने इस मामले पर अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की है। क्या अधिकारी की यह हरकत नियमों के उल्लंघन की अनदेखी है या प्रशासनिक ढांचे में कुछ गंभीर खामियां हैं?
इस मामले ने न केवल चुनावी माहौल में हलचल मचाई है, बल्कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के प्रशासनिक तंत्र पर भी सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। विपक्षी दलों ने इसे लोकतंत्र और संविधान के खिलाफ बताते हुए इसकी कड़ी आलोचना की है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पंचायती राज मंत्री केशव प्रसाद मौर्य से उम्मीद की जा रही है कि वे इस गंभीर मामले का संज्ञान लेंगे। अगर सरकारी अधिकारी इस तरह से अपने पद का दुरुपयोग करते रहेंगे, तो यह न केवल संविधान की अवमानना होगी, बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था की साख भी दांव पर लग जाएगी।
इस घटना ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या सरकारी अधिकारियों को उनके राजनीतिक झुकाव से स्वतंत्र होकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं करना चाहिए? या फिर इस तरह की घटनाओं पर कठोर कार्रवाई की जरूरत है ताकि ऐसी गतिविधियों पर लगाम लगाई जा सके।
अधिकारियों की निष्पक्षता और उनकी जिम्मेदारी पर उठते सवाल अब जनता और प्रशासन दोनों के लिए एक बड़ा मुद्दा बन गए हैं। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सरकारें इस पर क्या कदम उठाती हैं, यह देखना महत्वपूर्ण होगा।
Post Comment