झूठे का बोलबाला सच्चाई की ज़ुबान पर लगा दिया ताला?
ईस्ट इंडिया टाइम्स
समाचार संपादक।
जमाल अली।
किसीने खूब कहा है झूंट का बोलबाला सच्चाई का मूह काला। ये कोई डिग्री नहीं बल्कि इसमें ज़्यादातर तर लोगों को झूठ बोलने की महारथ हासिल है,
कुछ दिनों पहले हमने इंटरनेट पर पढ़ा कि इयान लेस्ली ने अपनी नयी किताब ‘बॉर्न लायर्स’ में लिखा है कि हम सब जन्म से ही झूठ बोलने की कला जानते हैं.लेकिन जब कोई नन्हा बच्चा तीन से चार वर्ष की उम्र में पहुंचता है वहीं से ही बच्चे सीख जाते हैं कि सफाई से झूठ कैसे बोलना है.वहीं से हमने लोगों को कहते हुए देखा कि आपतो जन्म से ही झूंथ बोलना सीखे हो।मैने इतना पढ़ते ही अपने दायरे में उन लोगों की तलाश शुरू की, जिन्होंने कभी झूठ नहीं बोला है.जब मुझे कोई नहीं दिखाई दिया फिर मैंने अपने
कुछ दोस्तों को भी ऐसे लोगों को ढूंढ़ने को कहा. लेकिन कोई सफलता नहीं मिली.पूरी कोशिश की लेकिन एक भी ऐसा आदमी नहीं मिला, जिसने आज तक झूठ नहीं बोला हो. कुछ तो सिर्फ झूठ ही बोलते हैं.कभी कभी मैं खुद भी अपनी जुबान का ज़ायका बदलने के लिए झूठ बोल लेता हूं. इसी बात पर हो रही चर्चा के दौरान एक मित्र ने सीधे-सीधे कहा दुनिया में ऐसा कोई नहीं है, जिसने आज तक झूठ नहीं बोला हो. अगर आदमी है, तो झूठ बोलता ही होगा,मुझे पूरा यकीन है झूठ और मानव सभ्यता का विकास एक साथ हुआ होगा.इसलिए आज सभ्यता के शीर्ष पर पहुंच कर, तकनीक के गुलाम बन कर भी हम आधुनिक लोगों को भी झूठ बोलना पसंद है.जब से दूर संचार ने रफ्तार पकड़ी है, तब से टेलीफोन के माध्यम से झूठ,फिर मोबाइल का दौर शुरू हो गया और अब मोबाइल से झूठ,कुछ लोगों को झूठ पकड़ने की भी महारथ हासिल है और वो इस तरह पेश आते हैं और झूठ बोलने वाले को पकड़ लेते हैं,झूठ बोलने वाले पकड़े जाने के बाद बहाना बना देते हैं कि कि जुबान का टेस्ट बदल रहा था या किसी की भलाई के लिए कहा गया झूठ, झूठ नहीं होता है. असल में झूठ, झूठ ही होता है. यहां तक कि गांधी जी ने एक बार झूठ बोलने की बात स्वीकार की है. मैंने उनकी बात काटते हुए कहा,लेकिन राजा हरिश्चंद्र. उसने फौरन कहा, कहां सतयुग में चले गये .आज के कलियुग में लौट कर खोजो. वैसे सतयुग में भी नामचर के ही लोग ही होंगे, जो सिर्फ सच बोलते होंगे. ज़्यादातर लोगों ने कभी न कभी झूठ बोला ही होगा, तभी तो हम आज तक सिर्फ हरिश्चंद्र को ही सबसे सच्च व्यक्ति मानते चले आए हैं. कियुं की उन्हें ‘सत्यवादी ’ कहते हैं.और कोई
दूसरा शायद न हो वहां.लेकिन हमारे देश में ही कहा गया है, ‘मनसा वाचा कर्मणा’ यानी मन, वाणी और कर्म से एक बनो नेक बनो, लेकिन सच बात तो यह है कि हम देशवासी इस चिंतन को फुटबॉल समझ कर बोंसर मारे जा रहे हैं यूं कहें कि ठोकर मारे जा रहे हैं.बचपन से हम सुन रहे हैं लोग कहते हैं कि झूठ बोलनेवालों को कौआ काटता है या झूठ का मुंह काला होता है.लेकिन मैंने अपने जीवन में देखा है ऐसा कुछ भी नहीं होता है.किसी झूठ बोलने वाले को कौवे ने काटा हो ये सारी बातें अपने आप में झूठी हैं. क्योंकि अगर सच में झूठ बोलने पर कौवा काटता, तो आज न कोई झूठ बोलता और न ही झूठ पकड़ने की मशीन बनाने की जरूरत पड़ती.इंसान के मस्तिष्क में क्या है और ज़ुबान से क्या कह रहा है, आज टीवी में दिखाए जाने वाले विज्ञापनो में भी झूठ का पुलिंदा है,एक चिंता का विषय है हमारे देश में कुर्सी के लिए नेताओं की ज़ुबान से जो बयान निकल रहे है न जाने कितने झूठ देखने-पढ़ने को मिल रहे हैं. दरअसल ‘झूठ बोलना’ आज एक कला है.कियुं ना इस कला को और बेहतर बनाया जाय।
आप कब, कितना और कैसे झूठ बोलते हैं, यह पूरी तरह से आपकी क्षमता पर निर्भर करता है. कभी-कभी तो लगता है झूठ बोलने की कला को पाठ्यपुस्तक में शामिल कर देना चाहिए. इसमें भी झूठ बोलने की डिग्री दिलाई जाए,झूठ बोलने की परीक्षा कराई जाय,झूठ में ,अव्वल नंबर लाने पर उसको पुरस्कार और सम्मान देने का प्रावधान होना चाहिए.इसमें कुछ और भी शामिल करना चाहिए,जैसे झूठरत्न, झूठश्री वगैरह-वगैरह. क्योंकि इस कला के दम पर ही आप देश के ‘बड़े नेता’ बन सकते हैं.जैसे कि आज के युग में देखने को मिल रहे हैं,सच बोलोगे तो जेल को झेलो गे ,झूठ। बोलोगे हमारे साथ खेलोगे, आज झूठ का मुंह काला नहीं, बल्कि झूठ का ही बोलबाला है।
सच है पर कड़वा ज़रूर?
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