ईस्ट इंडिया टाइम्स रिपोर्ट सुनील कुमार

बाराबंकी-
परिवहन विभाग द्वारा स्कूली बच्चों को ढोने वाले अनफिट वाहनों के खिलाफ सख्ती से अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन एक चौंकाने वाले मामले ने विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक स्कूली वाहन जिसका फिटनेस 2008 से फेल था, वह पिछले 18 सालों से बेरोक-टोक सड़कों पर फर्राटा भरता रहा और विभाग को इसकी भनक तक नहीं लगी। यह घटना विभाग द्वारा समय-समय पर चलाए जाने वाले अभियानों की “खानापूर्ति” को उजागर करती है।आज शुक्रवार को सहायक संभागीय परिवहन अधिकारी (प्रशासन/प्रवर्तन) अंकिता शुक्ला, यात्री/मालकर अधिकारी रविचंद्र त्यागी और संभागीय निरीक्षक (प्राविधिक) बलवंत सिंह यादव की संयुक्त टीम ने हैदरगढ़ रोड पर चेकिंग अभियान चलाया। इस दौरान जब एक स्कूली वाहन के दस्तावेजों की जांच की गई, तो यह देखकर सभी हैरान रह गए कि उसका फिटनेस प्रमाणपत्र 2008 से ही समाप्त हो चुका था। यानी, यह वाहन पिछले 18 वर्षों से असुरक्षित तरीके से बच्चों को ढो रहा था। इस गंभीर लापरवाही पर टीम ने तत्काल वाहन को सीज कर दिया और संबंधित पक्षों को कड़ी फटकार लगाई।
इस अभियान के दौरान, कुल 3 वाहनों को सीज किया गया और 10 अन्य स्कूली वाहनों के खिलाफ विभिन्न उल्लंघनों के लिए चालान जारी किए गए। प्रवर्तन दल जहां एक तरफ सड़कों पर वाहनों की जांच कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ विद्यालयों में पहुँचकर परिसर में खड़े वाहनों का भी निरीक्षण कर रहे हैं।यह घटना दर्शाती है कि परिवहन विभाग को सिर्फ अभियान चलाकर खानापूर्ति करने के बजाय, फिटनेस मानकों और सड़क सुरक्षा नियमों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत और निरंतर निगरानी प्रणाली की आवश्यकता है। अन्यथा, ऐसे अनफिट वाहन सड़कों पर दौड़ते रहेंगे और मासूम बच्चों की जान जोखिम में डालते रहेंगे।इस मामले पर आपकी क्या राय है? क्या आपको लगता है कि ऐसे अभियानों से वास्तविक बदलाव आएगा?